अनुवादक : मृणालिनी देसाई
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अरक्षित
कोकण के घने जंगलो में पाए जाने वाले कोकम के पेड़ तक़रीबन १२ साल की वृद्धि के बाद फल देते है। कोकम के पेड़ प्रकृति ने दिया हुआ एक वरदान है। कोकम के खट्टे एवं अनोखे स्वाद ने इस फल को महाराष्ट्र ,कोंकण विभाग ,कर्नाटक, गुजरात ,गोवा, आसाम और केरळ के व्यंजनों में महत्वपूर्ण स्थान दिया है। कोकम के छिलके को भोजन में खट्टापन लाने के लिए इस्तेमाल करते है , जिन्हे आम्सूल के नाम से जाना जाता है। भारत में विविध प्रजाति के कोकम पेड़ पाए जाते है। किन्तु, गार्सिनिया इंडिका यह विशेष प्रजाति केवल रत्नागिरी जिला, उत्तर गोवा और सिंधुदुर्ग जिले के समुद्र तटीय जंगलो में ही पाई जाती है, ज्योंकि पश्चिम घाट या सह्याद्रि के काफी नजदीक है। १६ जुलाई २०१४ साल में आंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) द्वारा किये मूल्यांकन के अनुसार इस प्रजाति को “अरक्षित” (vulnerable) इस श्रेणी में सूचीबद्ध किया गया।

अरबी समुद्र की तट पर स्थित सिंधुदुर्ग जिले में बसा धामापुर गांव। दक्षिणोत्तर दिशा में ५०० साल प्राचीन धामापुर का तालाब, उत्तर दिशा में संथ गति से बहनेवाली कर्ली नदी और पश्चिम दिशा में अरबी समुद्र।
स्त्रोत: गूगल उपग्रह प्रतिमा
उपक्रम की शुरुवात
हर एक रचनात्मक और सफल उपक्रम की पहल किसी सामान्य घरेलु समस्या से होती है। कोकम फल के गूदे से शरबत और छिलको से आमसूल बनाया जाता है। यही कोकम फल का सर्वसामान्य उपयोग दिखाई देता है। धामापुर के पुराने पुश्तैनी मकान में रहनेवाली श्रीमती मीनल अलग -अलग व्यंजनों में आमसूल का उपयोग करती है। चार-पांच साल पहले श्रीमती मीनल इन्होने जब “कोकम के बीजों का क्या करे” यह सवाल उपस्थित किया तो परिवार में बातचीत हुई और मोहम्मद ने कहा - “इन बीजो से बटर बनाते है”। कोकम के बीज से बनाये जानेवाले इस बटर में कैलरीज की मात्रा कम होती है और यह बटर साधारण तापमान पर पिघलता नहीं है। कोकम बटर का यह एक विशेष गुणधर्म है। महाराष्ट्र के दक्षिण दिशा में स्थित सिंधुदुर्ग जिले का यह एक पारम्परिक खाद्यविशेष है।

गणितज्ञ एवं प्रोफेसर श्री. विष्णुपंत देसाई इनका धामापुर गांव में पुश्तैनी मकान
कोकम बटर की जानकारी देते वक्त मोहम्मद कहते है – ‘’यहाँ के स्थानिक लोग आहार में इस बटर का काफी इस्तेमाल करते थे। पहले यहाँ के हर एक घर में कोकम बटर बनाया जाता था। जिसे स्थानिक भाषा में “मुठियाल” के नाम से जाना जाता है। मालवण तहसील के घने जंगलों में कोकम के पेड़ काफी मात्रा में पाए जाते है। यह एक जंगली पेड़ है जिसे किसी अन्य पेड़ की तरह देखभाल करना जरुरी नहीं होता। कोकम के पेड़ १२ साल की वृद्धि के बाद फल देना शुरू करते है। एप्रिल -मे महीने के दौरान इस फल का हंगाम होता है। हम इन फलों की बीजो से तेल निकालकर उसका भोजन में सेवन करते है।’’
विशेष गुणधर्मो की उपेक्षा
कोकम बटर बनाने की प्रक्रिया श्रम -केंद्रित होने की वजह से औद्योगिकता और व्यापारिकता का अर्थकरण इस पर हावी होता गया। उसी आधार पर तथाकथित “अविकसित” माने जाने वाले आशिया और आफ्रिकन समाज में “विकास” की कल्पना फैलाई गयी। घर -घर में बनाया जाने वाला कोकम बटर यहाँ की स्थानिक समृद्धि को सूचित करता था। किन्तु, जल्द ही कोकम बटर -मुठियाल को बड़ी चतुराई से स्थानिक खाद्य संस्कृति से अलग कर दिया गया। सौंदर्य प्रसाधन बनानेवाले बड़े औद्योगिक कारख़ानोने स्थानिक लोगो से २५ रुपये किलो इस भाव से कोकम के बीज लेना शुरू किया।

कोकम की बीजों से बननेवाला बटर आज मोइश्चुरायझिंग क्रीम्स, साबुन, फेस लोशन्स और बॉडी लोशन्स जैसे ब्रॅंडेड उत्पादनों में पाया जाता है। मोहम्मद के परिवार की सदस्या मृणालिनी कहती है - स्थानिक लोगो से कम कीमत पे बीज लेके वे बड़े औद्योगिक कारखानों में निर्यात की जाती है और उसीको ब्रॅंडेड उत्पादन के रूप में स्थानिक लोग खरीदते है।

कोकम के बीज
मूल्य और मिलावट
स्यमन्तक “जीवन शिक्षण विद्यापीठ” के संस्थापक श्री सचिन देसाई उपक्रम की जानकारी देते वक्त बोले - “औद्योगिकता ने जबसे कोकम के बीज पर नियंत्रण रखना शुरू किया तबसे स्थानिक लोग कोकम बटर का आहार में सेवन करने की परंपरा ही भूल गए। आधुनिक जगत के भौतिकवाद के साथ जुड़ते हुए सिंधुदुर्ग के स्थानिक लोग उनकी समृद्ध खाद्य संस्कृति को ही भूल गए।”
समृद्ध गांव की पारम्परिक कोकम बटर प्रक्रिया आज बड़े औद्योगिक उपकरणों में परिवर्तित हुई। भारी यंत्रो की सहायता से कोकम बीज से तेल निकाला जाता है। उत्पादन की मात्रा बढ़ाने के लिए इस बटर में वनस्पति तेल की मिलावट की जाती है। परिणामतः स्थानिक बाजार में यह बटर काफी सस्ता होता है। पर मिलावट की वजह से बटर की गुणवत्ता और पोषण मूल्य को कम करता है।
प्रमाणबद्ध गुणवत्ता
रचनात्मक कार्यकर्त्ता और उत्साही समाज सुधारको के लिए क्रांति कभी भी आक्रमक नहीं होती। क्योंकि आक्रमकता मकसद को शुरुवात से ही खत्म कर देती है। धामापुर गांव के स्यमन्तक “जीवन शिक्षण विद्यापीठ” के सदस्य मोहम्मद, विश्वास, मृणालिनी और शोभा इन्होने सिंधुदुर्ग जिले के पारम्परिक कोकम बटर बनाने की पद्धति का अध्ययन किया। कभी एक ज़माने में सिंधुदुर्ग के घर -घर में लोग चुले पे सेकी गरम नाचनी की भाकरी पर कोकम बटर लगाते थे। कोकम बटर लगाई हुई गरम नाचनी की भाकरी और उस पर स्वादानुसार नमक। भूतकाल के धुंधले हुए पन्नो में छिपी कोकम बटर की जानकारी और विधि को खोजने और समजने के लिए इन युवको को चार साल लगे।
गांव के लोग कोकम के बीज सड़क पर सूखाते है। सड़क पर आती -जाती गाड़ियों के वजन से इन बीजों के छिलके भी निकल जाते है और फिर इन्हे बड़ी कॉस्मेटिक कारखानों को बेचीं जाती है। अध्ययन के दौरान चारों ने यह अस्वच्छ तरीका देखा। इस काम को आसान और साफ-सुथरा बनाने के लिए उन चारों ने बेरिंग लगाई हुई पत्थर की चक्की मंगवाई। काम आसान हो गया। दक्षिण भारत में इस्तेमाल किया जाने वाला हेवी ड्यूटी वेट ग्राइंडर की वजह से काम करना सुलभ हुआ। कोकम बटर पद्धति में सुधार का यह एक महत्वपूर्ण कदम था।
चार साल की लगातार कोशिशों के बाद आखिरकार कोकम बटर बनाने की एक सुलभ प्रक्रिया सामने आई और अक्टूबर 2020 में कोकम बटर बनाने की पारम्परिक प्रक्रिया को पुनःस्थापित किया गया। मृणालिनी कहती हैं - “इस पहल में मेरे माता-पिता सहित हम छह लोग शामिल हैं। हर व्यक्ति अपने अपने कौशल्य और खूबी से इस उपक्रम में योगदान करते है। उदाहारण के तौर पर मेरे माता -पिता अनोखे प्रॉडक्ट डिजायनिंग की योजनाए ,पैकेजिंग आदि कौशल्य में अपना योगदान देते है। हमारे परिवार को साल भर लगने वाला कोकम बटर हम बनाते है। इसके अलावा हमारे ऑनलाइन स्टोर के द्वारा प्रति माह लगभग १० किलो के आसपास कोकम बटर बेचते है। ऑनलाइन स्टोर के माध्यम से हमारे उत्पाद पुरे भारत में बिकते है।’’
और अब ग्राहकों को यह असल कोकम बटर पाने के लिए महीनों इंतजार करना पड़ता है। जिस प्रकार फूल की सुगंध हमेशा फैलती है और फिर भृंग उसकी ओर आकर्षित होता वैसे ही अच्छे काम भी फैलते हैं और अच्छे लोगों को अपने में शामिल करते हैं। कोकम बटर उपक्रम की सफलता को देख कालसे गांव का युवक प्रथमेश कालसेकर भी उपक्रम में शामिल हुआ। प्रथमेश कालसेकर कृषि क्षेत्र में डिग्री की शिक्षा ले रहा है। धामापुर गांव की एक गृहिणी वर्षा सुतार भी कोकम बटर के इस उपक्रम में शामिल हुईं।
प्रकृति द्वारा कोकण क्षेत्र को दिए गए इस अनमोल रत्न का मूल्य उन्हें समझ आया है।

विश्वास -पत्थर की चक्की पर कोकम के बीज पिसते वक्त

सफल उपक्रम
धामापुर गांव के इस संयुक्त परिवार की सफलता के बाद, वे अब सिंधुदुर्ग जिले में विभिन्न स्वयं सहायता समूहों और अन्य छोटे व्यवसायिकोंको अनोखे उत्पाद की अवधारणाओं, उनकी उत्कृष्ट पैकिंग आदि के लिए मार्गदर्शन कर रहे हैं। यह कहते हुए मोहम्मद कहते हैं- “हम उस समृद्धि का सम्यक तरीके से लाभ उठाना चाहते हैं जो प्रकृति ने हमें दी है, जैसा कि हमारे पूर्वजों ने किया था। मनुष्य के बेहतर पोषण और आजीविका के लिए कोकम फल यह प्रकृति द्वारा कोंकण इलाके को दिया एक वरदान है। अपनी और परिवार की जरूरतों के लिए अलग रखें और बाकी को बेच दें। स्थानीय लोगों को शुद्ध कोकम बटर बनाना चाहिए और इसे अपने आहार में सेवन करना चाहिए जैसा कि पहले हुआ करता था। इससे अच्छी अमीरी और क्या हो सकता है! स्यमन्तक जीवन शिक्षण विद्यापीठ की दृष्टि से यह पहल स्थानीक ग्राम स्तर पर की जानी चाहिए, एक समय आएगा जब कॉस्मेटिक कारखानों को बेचने के लिए अतिरिक्त बीज ही नहीं होंगे और यही इस उपक्रम की सबसे बड़ी सफलता होगी।”
जंगल का महत्त्व
गार्सिनिया इंडिका चोइस यह कोकम की प्रजाति कोकण इलाके की समृद्ध जैव विविधता और परंपरा का हिस्सा है। कोकम जैसी अनोखी और बहुमूल्य प्रजातियां असुरक्षित हो जाती है जब बहुसंख्य लोग एकल कृषि पद्धति पर केंद्रित होते है। प्रकृति के इस बहुमोल विरासत संवर्धित करना जरुरी है। पर्यावरणीय दृष्टिकोण के अलावा, स्थानिक लोगो को यह काफी लाभदायक है। कम कीमत पर बिकने वाले इन बीजों को आज आहार में पौष्टिक तेल में बदल दिया गया है, जिससे इसकी कीमत और मूल्य में वृद्धि हुई है।
“विकास” अवधारणा पर पुनर्विचार
स्यमन्तक जीवन शिक्षण विद्यापीठ के पूर्व विद्यार्थी और विश्वस्त मोहम्मद शेख इन्होने ग्रामीण विकास इस विषय में स्नातकोत्तर शिक्षा प्राप्त की है। इसी दौरान उन्होंने कई सामाजिक विषयों में सहभाग लिया। कुटीर उद्योग की अवधारणा से कोकम बटर का उत्पादन एक ऐसी पहल है। इसी दौरान 500 साल पुरानी धामापुर तालाब का गहन सर्वेक्षण और अध्ययन भी किया गया। इस समय कई पर्यावरणीय उल्लंघनों के खिलाफ आवाज उठाकर धामापुर तालाब को पर्यावरणीय खतरों से बचाया गया। एक लंबे संघर्ष के परिणामस्वरूप, साल 2020 में सिंचाई और जल आर्थिक व्यवहार्यता; स्यमन्तक “जीवन शिक्षण विद्यापीठ” के ऑनलाइन स्टोर (स्वयम नैचरल्स) के उत्पाद मुंबई, दिल्ली, बैंगलोर, गोवा और हैदराबाद जैसे महानगरों के विविध इको-स्टोर में भी जाते है। गोवा चित्रा जैसे लोकप्रिय संग्रहालयों में भी इस कोकम बटर की काफी मांग है। स्वयम नैचरल्स अब विभिन्न रेस्तरां में पश्चूराइज्ड बटर के बजाय कोकम बटर में बनाई गई पावभाजी यह अवधारणा को पेश करने की कोशिश में है। निकास अंतर्राष्ट्रीय आयोग (ICID) द्वारा धामापुर तालाब “वर्ल्ड हेरिटेज इरिगेशन स्ट्रक्चर” घोषित किया गया।
इस सफलता का परिणाम धीरे -धीरे स्थानिक लोगो पर होने लगा। धामापुर तालाब के पास रहनेवाले युवक मनोज धमापुरकर उन्हीमें से एक है। मनोज धामापुर तालाब में पर्यटकों के लिए पेट्रोल /डिझेल नाव चलाते थे। धामापुर तालाब सिंधुदुर्ग जिले की एक वेटलैंड या आर्द्रभूमि है। घोषित वेटलैंड या आर्द्रभूमि में पेट्रोल/ डीजल की नाव चलाना अवैध है। धामापुर तालाब से मालवण शहर के साथ ही अन्य 15 गांवों को पीने के लिए पानी पहुंचाया जाता है। मनोज धामापुरकर इन्हे पीने के पानी में चलाई जा रही पेट्रोल नाव की गंभीरता और क्षति का एहसास हुआ और उन्होंने वह रोक दिया। उन्होंने विविध प्राकृतिक एवं अनोखे उत्पाद को “हॉर्नबिल इको स्टोर” के माध्यम से बेचना शुरू किया और अब यह प्राकृतिक व्यवसाय एक नया आकार ले रहा है। चिप्स और कोला के उपभोक्तावादी औद्योगीकरण के शिकार हुए बिना वो एक शाश्वत उपजीविका शुरू करने के प्रयास में है ,जो ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सक्षम करे और न की बड़े औद्योगिक कारख़ानोंको। यह उपक्रम कोविड लॉक डाउन से से ठीक 7 दिन पहले शुरू हुआ और केवल एक सप्ताह में 28,000 की बिक्री हुई। मनोज को उत्पाद, पैकेजिंग,एवं अन्य विक्री और उपक्रम विषयक प्रशिक्षण स्यामंतक जीवन शिक्षण विद्यापीठ द्वारा दिया गया।
इस उपक्रम को अवश्य भेट दे। शोभा, विश्वास, मृणालिनी और परिवार द्वारा शुरू किया गया यह शाश्वत व्यवसाय जो न केवल प्रगति की अवधारणा पर केंद्रित है बल्कि जिसमे प्रकृति का भी समावेश होता है। स्यमन्तक जीवन शिक्षण विद्यापीठ सिंधुदुर्ग की समृद्ध प्राकृतिक विरासत को साथ लेकर अपनी अनूठी पहचान बना रहा है।

मनोज धामापुरकर उनके इको स्टोर में

दायी तरफ से - विश्वास, मोहम्मद, मृणालिनी, सचिन, मीनल और शोभा
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